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Bouncing ball

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विश्र्वाची ऊत्क्रांती केंव्हा झाली हे सांगणे माझ्यासाठी कठीण -आकाश सुपारे

पण भारतात  माझा  भटका  वडार  हा  पहिला  शास्त्रज्ञ होऊन  गेला.

त्याने  दगडाचे  चाक  बनवले   धान्य  दळणारे  जात,  पाटा  वरवंटा.  पाणी  साठवण्याचे  दगडाचे  रांजन,  शिकार  करण्याची  दगडी  हत्यारे  ईत्यादी.  पाषाण  युगातला  पहीला  अधुनिक  प्रगतीचे  हत्यारे  ही  वडार  प्रजातीने  बनवली.

नंतर  गौतम  बुद्ध  व  सम्राट  अशोकाच्या  कालखंडात  राजवाडे,   लेण्या,  मंदिरे,  शिल्प,  दगडी  पुल  विहीरी
बणवण्याचे  काम  केले.

वैदिक  आर्य   आपल्या  भुमीवर  कधि  आले  हे  सांगणे  थोडे  कठिन  जरी  असले  तरी  हि  जमात  गायी  गायी  गुरे  चारण्या  साठी  आली  होती.  चंद्रगुप्त   मौर्य  पासुन  बिंबीसार,  सम्राट  अशोक,  हिरण्याक्ष,  हिरण्या  कश्यप्पु,  प्रल्हाद,  बळी  राजा,  सात  वहन,  ब्रहदरथा  पर्यत  बौद्ध  राजांचे  राज्य  होते.  ह्या  संंपुर्ण  काळात  वडार  जमात  ह्या  संस्र्कुतीत  मुख्य  प्रवाहात  होती.  ब्रहदरथाचा  कपटाने  खुन  झाल्या  नंतर  बौद्ध  संस्क्रुती  लोप  जरी  पावली  असली  तरी  ती  लेण्यांच्या  स्वरुपात  आजही  जिवंत  आहे.  

आर्य  आणि  अनार्यांच्या  फार  लढाया  झाल्या  त्याला  सुर,  असुरांची  लढाई  म्हटले  जाते.  सुर  म्हणजे  दारु  पिणारे  अन  असुर  म्हणजे  दारु  न  पिणारे.  आज  जे  रामायण,  महाभारत  ह्या  कथा  सांगितल्या  जातात  त्यात  बहुजन  समाजाची  हार  झालेली  सांगीतल्या  जाते.  त्यातही  चमत्कार  जोडुन.  पिढ्या  दर  पिढ्या  हा  खोटा  ईतिहास  आर्यांनी  समाजात  पसरवण्यात  ते  यसश्वी  झाले.  

वडार  जमात  वोडिसा  आंद्र,  कर्नाटक  या  भागातुन  विस्तापित  झाला  त्यांनी  आर्यांची  गुलामी  नाकारली  आणि  भारतभर  विखुरला  गेला.  काही  काळ  जंगलात  राहीला.

वडार  हा  आत्ताचा  अपभ्रंश  झालेला  शब्द  आहे.  वडियार,  वड्डेराजुल,  वौंड,  अशा  अणेक  नावाने  ओळखला  जातो.   

कालांतराने  शिल्पकला  लोप  पावत  चालली.  राजाश्रय  होता  तो  पर्यंत  समाज  सम्रुध्द  होता.  सहाजीकच  भटकंती  करतांना  हा  समाज  ही  कला  विसरत  गेला.  छ.  शिवाजी  महाराजांच्या  काळात  समाजाला  चांगले  दिवस  आले.  किल्ले  राजवाडे,  बंधारे,  कालवे,  मंदीरे  ऊभारण्याच  काम  प्रामुख्याने  वडार  समाज  करु  लागला.  ईरोजी  ईटळकर  हे  आपल्या  समाजाचे  शिवाजी  महाराजांच्या  अष्टप्रधाण  मंत्र्यां  पैकी  बांधकाम  मंत्री  म्हणुन  स्वराज्य  निर्माण  करण्याच्या  कामात  महत्वाचे  योगदान  म्हणुन  वडार  समाजाकडे  पहायला  पाहिजे.  पण  हा  ही  ईतिहास  विसरत  चाललो.

त्या  नंतर  क्रांतीबा  फुले  यांच्या  पुणे  कंस्ट्रक्शन  कंपणी  मार्फत  वडार  समाज  पुल  रस्ते,  शासकीय  ईमारत,  बोगदे,  दगड  खनीचे  कामे  करु  लागला.

फुलेंच्या  नंतर  समाजाकडे  असलेले  कौश्यल्य  कोणी  कोणी  सर्मुध्द  केले  असेल  तर  आरक्षणाचे  पहिले  जनक  राजर्षि  शाहु  महाराजांनी.  वडार  समाजा  कडुन  धरण,  कालवे,  विहीरी,  रस्ते  तयार  करण्याची  कामे  मुख्यतहा  समाजाणे  केली.  विषेश  म्हणजे  समाजा  कड  असलेल  बळ  शाहु  महाराजांनी  कुस्तीत  वापरले  त्या  काळी  वडार  पहिलवानांनी  आखाडा  फार  गाजवला.   आणि  समाजाला  भटकंती  पासुन  रोखण्यासाठी  महाराजांनी  समाजाला  अनेक  जमिनी  दिल्या.  पोवार  नावाचे  वडार  समाजाची  व्यक्ती  शाहु  महाराजांनी  नगरअध्यक्ष  म्हणुन  बिनविरोध  नगरपरीषदेत  पाठवली  होती.

आज  आपण  अधुनिक  भारतात  आहोत.  आजही  समाजाची  भटकंती  संपलेली  नाही.  जो  तो  आरक्षण  मागतोय.  त्यात  आपली  मागणी  SC  ST  च्या  आरक्षणाला  धक्का  न  लावता  जसा  बाकीच्या  राज्यात  वडार  समाज  आरक्षणाचा  लाभ  घेतो  तसा  महाराष्ट्रात  समाजाला  मिळायलाच  पाहीजे.  व्यवस्तेने  भटक्या  समाजाला  मुख्य  प्रवाहात  येऊ  नये  म्हणुन  खास  करुन  महाराष्ट्रातील  वडार  समाजावर  फार  मोठा  अन्याय  केला  आले.  प्रस्तापित  सरकार  सहज  देईल  अस  वाटत  नाही.

जे ईतिहास विसरतात ते नविन ईतिहास घडवु शकत नाही. व व्यवस्ते विरुध्द लढु शकत नाही.
समाजाने दशा आणि दिशा भविष्यात ठरवणे खुप गरजेचे आहे. सामाजिक बांधीलकी जोपासण्याची गरज आहे. आपल्या स्वत्हाच्या तर्क बुद्धीने विचार करण्याची व मांडण्याची गरज आहे.
 मतभेद  सर्व  समाजात  आहेत.  जर  येणार्या  पिढीसाठी  आपण  येकत्र  नाही  आलो  तर  फार  मोठ्या  संकटाशी  सामना  करावा  लागेल.   आपन  सर्व  एकीचा  संदेश  देवु.  हीच  अपेक्षा.

क्रांती  ही  समाजाने  समाजासाठीच  केली  पाहिजे.

आकाश  ऊर्फ  तुकाराम  सोनाजी  सुपारे  
वडारगल्ली,  शेवगाव,  अहमदनगर  9822510254
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